कितने बसंत काटोगे एेसे? कितने सावन गाओगे?
जब भी साँझ ढलेगी, तुम फिर अपने घर को आओगे
फिर ढूँढोगे अम्माँ ! नानी ! भूल गये थे जिनको अब तक
परियों वाली वही कहानी, क्या फिर तुमको बाँध सकेगी?
क्या फिर बैलों की घन्टी की टनटन, वो कच्ची नींदें तोड़ सकेगी ?
या बाबा की पूजा वाली मिस्री तुमको रोक सकेगी?
इस गर्मी की छुट्टी में क्या तुम नहर नहा पाओगे?
कितने बसंत काटोगे एेसे? कितने सावन गाओगे?
पाखर की टहनी पर टँगी छोड़ आये थे जिसको
झूले की एक पेंग अभी तक वहीं पड़ी है
चितकबरी बिल्ली जो तुमसे नहीं डरी थी
मरखू गैया, रस्सी तोड़े वहीं खड़ी है
क्या तुम अबकी बार, मटर-गुड़ खा पाओगे ?
कितने बसंत काटोगे एेसे? कितने सावन गाओगे?
बात हुयी थी , साथ समय के चला करोगे
ये कैसी ज़िद पाली? कितने आगे चले गये हो?
थके हुये से रहते हो, बूढ़े लगते हो
जब भी हँसते हो, खिसियाने से दिखते हो
तन का-मन का सोना खोकर, पैसों की मिट्टी पाओगे
कितने बसंत काटोगे एेसे? कितने सावन गाओगे?
मीठी सी उस नींद से पहले, याद अगर हो
चाँद, कभी तितली - तारे तुम जब माँगा करते थे
मुट्ठी भर जुगनू मैं तब लाया करता था
तुम भी कितने तारे रोज़ गिना करते थे
बहुत ज़रूरत है इन बूढ़ी आँखों को उनकी
क्या वो जुगनू तुम अब इनको दे पाओगे ?
कितने बसंत काटोगे एेसे? कितने सावन गाओगे?
गौधूलि के सूरज से कुछ आस बंधी है
तुमसे ही तो बेटा मेरी साँस बंधी है
सबके घर तो लिपे-पुते हैं, दीप जले हैं
मेरे घर का चूल्हा अब भी बुझा पड़ा है
कलरव करते पंछी भी घर लौट रहे हैं
क्या इस दीवाली तुम अपने घर आ पाओगे?
कितने बसंत काटोगे एसे? कितने सावन गाओगे?