वो परिन्दे भी अब यहाँ नहीं आते
वो कहीं दूर बस गये शायद
वो कहीं दूर बस गये शायद
फल लदे पेड़ सूखने से लगे
ज़मीं के कन्धे धँस गये शायद
शहर में बिखरा है अज़ब सा सन्नाटा
चोर, मुंसिफ़ भी बन गये शायद
जुबां अकड़ने लगी है, हुआ अंधेरा सा
साँप आस्तीनों के डँस गये शायद...